अनूपलाल मंडल (1896-1982) प्रेमचंद की आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कथाधारा के निर्वाहक उपन्यासकार हैं। उनके उपन्यासों में प्रेमचंद की ही भॉंति स्थान-स्थान पर जीवनानुभव, आदर्श और दर्शन-विषयक सूत्रवाक्य पिरोये मिलते हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में 18 उपन्यास, 4 जीवनियाँ, 4 अनूदित कृतियाँ और कई संपादित पुस्तकें शामिल हैं। ‘निर्वासिता’ (1929, परवर्ती संस्करण ‘अन्नपूर्णा’ के नाम से, 1959), ‘समाज की वेदी पर’ (1930), ‘साकी’ (1931), ‘ज्योतिर्मयी’ (1933), ‘रूपरेखा’ (1934), ‘सविता’ (1935), ‘मीमांसा’ (1937), ‘वे अभागे’ (1937),‘दस बीघा जमीन’ (1941), ‘ज्वाला’, ’आवारों की दुनिया’ (1945), ‘दर्द की तस्वीरें’ (1945), ‘बुझने न पाए’ (1946),‘रक्त और रंग’ (1955), ‘अभियान का पथ’ (1955), ‘केन्द्र और परिधि’ (1957), ‘तूफान और तिनके’ (1960) तथा ‘उत्तरपुरुष’ (1970) उनके उपन्यासों के नाम हैं। ‘मीमांसा’ नामक उनके उपन्यास पर 1940 ई. में फिल्म इंडिया, मुंबई द्वारा ‘बहूरानी’ नामक हिन्दी फिल्म का निर्माण भी किया गया था।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने उनके उपन्यास 'केन्द्र और परिधि' पर निम्नांकित टिप्पणी की है--''केन्द्र और परिधि' एक विचारप्रधान उपन्यास है, जिसमें पात्र मानवीय प्रवृत्तियों के प्रतीक बनकर आए हैं। इसमें विचारों की संवेदक शृंखला आदि से अंत तक इतनी मोहक है कि घटना-चक्र के अभाव में भी इसकी रोचकता बनी रहती है। उपन्यास के क्षेत्र में प्रतीक-संरचना तथा अपनी कई सूक्तियों के कारण यह नि:संदेह चिरस्मरणीय है। रचना बहुत सुंदर है।''
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ReplyDeletekindly help me to collect the story of janardan pd diwj and sudhanshu ji for my research work ;bihar ke swatantra purv hindi kahanikar;
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