दुर्भाग्य के निष्ठुर हाथों से लूटी हुई अबला के पास अगाध पीड़ा के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है? चंपा के पास भी वही एक चीज रह गई थी। वही उसकी एकमात्र विभूति थी, जिस पर वह दुनिया की लोलुप दृष्टि नहीं पड़ने देती थी-वही उसके जीवन की एकांत साधना थी, जिसकी भावना में वह दिन-रात डूबी रहती थी।
कोसी अंचल का साहित्यिक अवदान कोसी नदी की जलराशि और धाराओं के समान ही अगाध और बहुआयामी है। अंचल के हिन्दी कथाकारों में अनूपलाल मंडल, जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’, फणीश्वरनाथ रेणु, राजकमल चौधरी, मधुकर गंगाधर, मायानंद मिश्र, रामधारी सिंह दिवाकर, शालिग्राम, चंद्रकिशोर जायसवाल और विजयकांत सर्वाधिक सुपरिचित नाम हैं। 'कोसी कथा धारा' के अंतर्गत कोसी अंचल के कथाकारों की प्रतिनिधि कहानियॉं एक-एक कर प्रस्तुत की जाऍंगी।
Friday, October 22, 2010
जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' की कहानी : परित्यक्ता
दुर्भाग्य के निष्ठुर हाथों से लूटी हुई अबला के पास अगाध पीड़ा के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है? चंपा के पास भी वही एक चीज रह गई थी। वही उसकी एकमात्र विभूति थी, जिस पर वह दुनिया की लोलुप दृष्टि नहीं पड़ने देती थी-वही उसके जीवन की एकांत साधना थी, जिसकी भावना में वह दिन-रात डूबी रहती थी।
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