Friday, October 22, 2010

जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' की कहानी : परित्‍यक्‍ता


दुर्भाग्‍य के निष्‍ठुर हाथों से लूटी हुई अबला के पास अगाध पीड़ा के अतिरिक्‍त और हो ही क्‍या सकता है? चंपा के पास भी वही एक चीज रह गई थी। वही उसकी एकमात्र विभूति थी, जिस पर वह दुनिया की लोलुप दृष्‍टि नहीं पड़ने देती थी-वही उसके जीवन की एकांत साधना थी, जिसकी भावना में वह दिन-रात डूबी रहती थी।

7 comments:

  1. Excellent story telling.Reflection of samskar of our area in the protagonist. His story is in real sense our heritable product. P K Jha , Karnpur, Supaul.

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  2. इस कहानी में प्रेमचंद की कथा धारा का निर्वाह है

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  3. द्विज जी की कहानी परित्यक्त्ता स्त्री व्यथा का प्रतबिंब है।

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  4. द्वीज जी की सारी कहानियाँ बेहद मर्मस्पर्शी हैं।इनका किसलय कहानी संग्रह की सारी कहानियाँ यथाः नरक तक,ठुकराया हुआ ठीकरा,दुअन्नी का दाता,गायक आदि काफी लोकप्रिय हुईं।इनकी कहानी "सपूत" मातृभक्ति और स्वाभिमान का जीवंत और बेजोड़ उदाहरण हैं।

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  5. प्रदीप कुमार पाठक
    कटहल मोड़ राँची

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  6. जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'-

    No.-1. किसलय (1929),

    No.-2. मालिका (1930),

    No.-3. मृदुदल (1932),

    No.-4. मधुमयी (1937)।

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