Monday, April 22, 2019

प्रताप साहित्यालंकार की कहानी : कसौटी

"जीजी, अब तुम्हारी पूजा-अर्चना सफल होती-सी दीख रही है।" रेखा ने आरती को आते देख कहा और मुसकरा पड़ी।
"तुम्हें तो हमेशा मजाक ही सूझता है।" आरती ने अन्यमनस्कता दिखलाई।
आरती मंदिर से पूजा कर लौट रही थी।.....
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Friday, October 22, 2010

जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' की कहानी : परित्‍यक्‍ता


दुर्भाग्‍य के निष्‍ठुर हाथों से लूटी हुई अबला के पास अगाध पीड़ा के अतिरिक्‍त और हो ही क्‍या सकता है? चंपा के पास भी वही एक चीज रह गई थी। वही उसकी एकमात्र विभूति थी, जिस पर वह दुनिया की लोलुप दृष्‍टि नहीं पड़ने देती थी-वही उसके जीवन की एकांत साधना थी, जिसकी भावना में वह दिन-रात डूबी रहती थी।

Tuesday, September 28, 2010

बिहार के प्रेमचंद : अनूपलाल मंडल

कोसी अंचल की धरती को इस बात का गर्व है कि हिन्‍दी साहित्‍य का कोई भी इतिहास इसकी कोख से जन्‍मे और इसकी गोद में पले-बढ़े साहित्‍यकारों के जिक्र के बगैर अधूरा है--चाहे वह गद्य का क्षेत्र हो या पद्य का। खासकर जब इस गद्ययुग के महाकाव्‍य 'उपन्‍यास' विधा की बात होती है, तब इस धरित्री का महत्‍व और भी बढ़ जाता है। 'बिहार का प्रेमचंद' से संबोधित किए जानेवाले अनूपलाल मंडल ही नहीं, वरन प्रेमचंदोत्‍तर कथासाहित्‍य को सर्वाधिक प्रभावित करनेवाले हिन्‍दी कथासाहित्‍य के विशिष्‍ट हस्‍ताक्षर फणीश्‍वरनाथ रेणु भी इसी कोसी अंचल की देन हैं।

अनूपलाल मंडल (1896-1982) प्रेमचंद की आदर्शोन्‍मुख यथार्थवादी कथाधारा के निर्वाहक उपन्‍यासकार हैं। उनके उपन्‍यासों में प्रेमचंद की ही भॉंति स्‍थान-स्‍थान पर जीवनानुभव, आदर्श और दर्शन-विषयक सूत्रवाक्‍य पिरोये मिलते हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में 18 उपन्यास, 4 जीवनियाँ, 4 अनूदित कृतियाँ और कई संपादित पुस्तकें शामिल हैं। ‘निर्वासिता’ (1929, परवर्ती संस्करण ‘अन्नपूर्णा’ के नाम से, 1959), ‘समाज की वेदी पर’ (1930), ‘साकी’ (1931), ‘ज्योतिर्मयी’ (1933), ‘रूपरेखा’ (1934), ‘सविता’ (1935), ‘मीमांसा’ (1937), ‘वे अभागे’ (1937),‘दस बीघा जमीन’ (1941), ‘ज्वाला’, ’आवारों की दुनिया’ (1945), ‘दर्द की तस्वीरें’ (1945), ‘बुझने न पाए’ (1946),‘रक्त और रंग’ (1955), ‘अभियान का पथ’ (1955), ‘केन्द्र और परिधि’ (1957), ‘तूफान और तिनके’ (1960) तथा ‘उत्तरपुरुष’ (1970) उनके उपन्यासों के नाम हैं। ‘मीमांसा’ नामक उनके उपन्यास पर 1940 ई. में फिल्म इंडिया, मुंबई द्वारा ‘बहूरानी’ नामक हिन्दी फिल्म का निर्माण भी किया गया था।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने उनके उपन्‍यास 'केन्‍द्र और परिधि' पर निम्‍नांकित टिप्‍पणी की है--''केन्‍द्र और परिधि' एक विचारप्रधान उपन्‍यास है, जिसमें पात्र मानवीय प्रवृत्‍तियों के प्रतीक बनकर आए हैं। इसमें विचारों की संवेदक शृंखला आदि से अंत तक इतनी मोहक है कि घटना-चक्र के अभाव में भी इसकी रोचकता बनी रहती है। उपन्‍यास के क्षेत्र में प्रतीक-संरचना तथा अपनी कई सूक्‍तियों के कारण यह नि:संदेह चिरस्‍मरणीय है। रचना बहुत सुंदर है।''