
दुर्भाग्य के निष्ठुर हाथों से लूटी हुई अबला के पास अगाध पीड़ा के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है? चंपा के पास भी वही एक चीज रह गई थी। वही उसकी एकमात्र विभूति थी, जिस पर वह दुनिया की लोलुप दृष्टि नहीं पड़ने देती थी-वही उसके जीवन की एकांत साधना थी, जिसकी भावना में वह दिन-रात डूबी रहती थी।
Excellent story telling.Reflection of samskar of our area in the protagonist. His story is in real sense our heritable product. P K Jha , Karnpur, Supaul.
ReplyDeleteइस कहानी में प्रेमचंद की कथा धारा का निर्वाह है
ReplyDeleteद्विज जी की कहानी परित्यक्त्ता स्त्री व्यथा का प्रतबिंब है।
ReplyDeleteसही कथन।
Deleteद्वीज जी की सारी कहानियाँ बेहद मर्मस्पर्शी हैं।इनका किसलय कहानी संग्रह की सारी कहानियाँ यथाः नरक तक,ठुकराया हुआ ठीकरा,दुअन्नी का दाता,गायक आदि काफी लोकप्रिय हुईं।इनकी कहानी "सपूत" मातृभक्ति और स्वाभिमान का जीवंत और बेजोड़ उदाहरण हैं।
ReplyDeleteप्रदीप कुमार पाठक
ReplyDeleteकटहल मोड़ राँची
जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'-
ReplyDeleteNo.-1. किसलय (1929),
No.-2. मालिका (1930),
No.-3. मृदुदल (1932),
No.-4. मधुमयी (1937)।