
दुर्भाग्य के निष्ठुर हाथों से लूटी हुई अबला के पास अगाध पीड़ा के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है? चंपा के पास भी वही एक चीज रह गई थी। वही उसकी एकमात्र विभूति थी, जिस पर वह दुनिया की लोलुप दृष्टि नहीं पड़ने देती थी-वही उसके जीवन की एकांत साधना थी, जिसकी भावना में वह दिन-रात डूबी रहती थी।